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कभी तेल बाती मिला कुछ नहीं है / कल्पना 'मनोरमा'
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कभी तेल बाती मिला कुछ नहीं है।
दिया ने किसी ने दिया कुछ नहीं है|
कभी ख्वाहिशों की कमी तो नहीं थीं,
रहे हाथ खाली मिला कुछ नहीं है।
घरौंदे परिंदों के यूँ न उजाड़ो ,
शजर काटने में भला कुछ नहीं है|
पसीने को बोया लहू में समोकर
किये सौ जतन पर खिला कुछ नहीं है।
ये कैसा सफ़र जिंदगी का अनोखा
थमा पीर का,सिलसिला कुछ नहीं है।
भरा था समंदर निगाहों के आगे,
रहे होंठ सूखे पिया कुछ नहीं है।
चलाता रहा नाव को रेत में वह,
न पाया किनारा गिला कुछ नहीं है।
कहो कल्प कैसे निभाएँ जहां में,
मिली ढूंढने से वफ़ा कुछ नहीं है।