भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कभी तो ऐसा ज़रूर हुआ होगा / मनोज छाबड़ा
Kavita Kosh से
कभी तो ऐसा ज़रूर हुआ होगा
कि
पतंग उड़कर आकाश हो गई होगी
कि
मछली तैरते-तैरते समुद्र हो गई होगी
कभी तो ऐसा हुआ होगा
कि
पत्थर का बुत बनाया गया हो
और बात करने लगा हो
कि बादलों ने अपने हाथों से
मरुस्थल में कोई नदी बनाई हो
कभी तो ऐसा ज़रूर होगा
कि
भूख
लहलहाते खेत बन जाएगी