Last modified on 12 फ़रवरी 2010, at 13:20

कभी तो जश्ने-चराग़ाँ शहर-शहर होगा / विनोद तिवारी

कभी तो जश्ने-चराग़ाँ शहर-शहर होगा
ख़ुशी से झूमता गाता हर इक बशर होगा

ये ज़र्द-ज़र्द-सी रंगत फ़िज़ा की बदलेगी
गुलाब होंठों पे गालों पे गुलमोहर होगा

वक़्त से प्रश्न असंगत नहीं पूछा करते
ज़ख़्म खा जाओगे जलता हुआ उत्तर होगा

गली में दौड़ता फिरता है, तोतला सूरज
पिता की पीढ़ी से हर हाल में प्रखर होगा

तलाश करके ही हम लोग रहेंगे जन्नत
ये और बात है मुश्किल बहुत सफ़र होगा