भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी तो सामने आ बेलिबास होकर भी / भवेश दिलशाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी तो सामने आ बेलिबास होकर भी
अभी तो दूर बहुत है तू पास होकर भी

तेरे गले लगूँ कब तक यूँ एहतियातन मैं
लिपट जा मुझसे कभी बदहवास होकर भी

तू एक प्यास है दरिया के भेस में जानां
मगर मैं एक समंदर हूँ प्यास होकर भी

तमाम अहले-नज़र सिर्फ़ ढूँढते ही रहे
मुझे दिखायी दिया सूरदास होकर भी

मुझे ही छूके उठायी थी आग ने ये क़सम
कि नाउमीद न होगी उदास होकर भी