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कभी नहीं जो माने हार, वही कृषक है / नचिकेता
Kavita Kosh से
कवि रामकुमार कृषक के लिए
कभी नहीं जो माने हार, वही कृषक है
जिए ज़माने को ललकार, वही कृषक है
जिसने घाम शीत वर्षा का ताप सहा है
शोषण-उत्पीड़न का हर अभिशाप सहा है
हुआ न फिर भी कभी उघार, वही कृषक है
कभी गीत में, कभी ग़ज़ल में, कविता में है
तानाशाही के विरुद्ध है, वो चिन्ता में है
तन से रहे भले बीमार, वही कृषक है
खुद का ईंधन डाल अलाव जलाए हरदम
धोने की खातिर पूरी दुनिया का कर्दम
दुख-दुर्दिन का पहने हार, वही कृषक है
हक़, आज़ादी की खातिर संघर्ष कृषक है
शोषित-उत्पीड़ित जन का आदर्श कृषक है
जो जन -जन में बाँटे प्यार, वही कृषक है ।