भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कभी न तुझे हम गवारा करेंगे / जगदीश नलिन
Kavita Kosh से
कभी न तुझे हम गवारा करेंगे
जैसे भी होगा गुज़ारा करेंगे
चलेंगे क़दम जा सकेंगे जहाँ तक
तल्ख़ियों का बेशक नज़ारा करेंगे
हुए दूर तुझसे इक ज़माना हुआ
तुझे भूलकर न पुकारा करेंगे
हमें भी बे-ख़ता तूने जो रुसवा किया
किसी पे भरोसा न दुबारा करेंगे
ख़्वाब देखा हमने जो साथ तेरे
आँखॊं से अब हम शरारा करेंगे