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कभी मायूस मत होना किसी बीमार के आगे / मदन मोहन दानिश
Kavita Kosh से
कभी मायूस मत होना किसी बीमार के आगे ।
भला लाचार क्या होना किसी लाचार के आगे ।
मुहब्बत करने वाले जाने क्या तरक़ीब करते हैं,
वगरना लोग तो बुझ जाते हैं इनकार के आगे ।
बिकाऊ कर दिया दुनिया ने जिसको होशियारी से,
बिछी जाती है ये दुनिया उसी बाज़ार के आगे ।
तुम्हे मौजें बताएँगी किसी दिन राज़ दरया का,
कई मझधार होते हैं वहाँ मझधार के आगे ।
किसी ठहरे हुए लम्हे की क़ीमत वक़्त से पूछो,
उसी से टूट कर लम्हा रहा रफ़्तार के आगे ।