एक बहुत प्यारी-सी लड़की थी 
थोड़े से दिनों के लिये वह मिली थी 
फिर खो गयी इसी शहर में कहीं
कुछ दिनों बाद बहुत यत्न किया उसकी तलाश का 
पर वह दिखी नहीं कहीं 
उसका चेहरा एक बच्ची की तरह मासूम था 
और आंखें यौवन के भान से संजीदा
कंधों तक घिरे उसके बाल और लंबी उन्मुक्त काया
हिमशिखरों की ओर आ निकली 
महाकाव्य की नायिका की याद दिलाते थे 
कोई बरस भर हमारा साथ रहा 
इस शहर की भीड़ भरी बसों में 
उसके साथ का थोड़ी देर का सफर 
और धीरे-धीरे गहरा होता परिचय
फिर उसका एक दिन चुपचाप चले जाना
बहुत दिनों के लिये मुझे अकेला छोड़ गया
पीछे मुड़ कर देखता हूं गुजरे दिनों की ओर तो
वह प्यारी-सी लड़की याद आती है 
किशोरवय की संधि-रेखा पर खड़ी वह लड़की 
नहीं जानता आज कहां होगी 
इतने दिनों बाद 
साड़ी में लिपटी उसकी आकृति की कल्पना
फरवरी के उस दिन की याद से कर पाता हूं
जब वह यों ही शौकिया
मां की साड़ी पहन कर आयी थी 
साड़ी में थोड़ा उम्र से बड़ी लग रही थी 
ज्यादा परिपक्व 
शायद वैसी ही कुछ लगती होगी अब
दफ्तर से लौटते वक़्त
जल्दी-जल्दी में खरीदे गये कुछ घरेलू सामान लिये 
तेज़ कदमों से बस की ओर बढ़ती 
जानता हूं कभी मिली तो
ऐसे ही मुस्करायेगी जैसे हम कल भी मिल चुके हों 
पता नहीं वह जानेगी भी कि नहीं
कि इन थोड़े से वर्षों में 
एक पूरा युग जी लिया है मैंने ।