कभी रात भर सो न सका मैं।
सोये जग की और बात है,
मेरी तो सम्पदा रात है,
निष्ठुर प्रियतम की यह सौंपी हुई
धरोहर खो न सका मैं।
कभी रात भर सो न सका मैं।
निशि के भी अगणित है प्यारे,
मेघ, दामिनी, चांद-सितारे,
धरती की छाती पर अब तक
हाय! किसी का हो न सका मैं।
कभी रात भर सो न सका मैं।
एक भेद जग समझ न पाया,
मुझे सुधाकर ने बतलाया,
अपने जीवन के कलंक को
कभी सुधा से धो न सका मैं।
कभी रात भर सो न सका मैं।