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कभी रात भर सो न सका मैं / बलबीर सिंह 'रंग'

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कभी रात भर सो न सका मैं।

सोये जग की और बात है,
मेरी तो सम्पदा रात है,
निष्ठुर प्रियतम की यह सौंपी हुई
धरोहर खो न सका मैं।
कभी रात भर सो न सका मैं।

निशि के भी अगणित है प्यारे,
मेघ, दामिनी, चांद-सितारे,
धरती की छाती पर अब तक
हाय! किसी का हो न सका मैं।
कभी रात भर सो न सका मैं।

एक भेद जग समझ न पाया,
मुझे सुधाकर ने बतलाया,
अपने जीवन के कलंक को
कभी सुधा से धो न सका मैं।
कभी रात भर सो न सका मैं।