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कभी सोचा न था / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

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मरने के बाद भी
तुम्हें
सम्मानित होना पड़े
अपने निरपराध दुष्ट मित्रों से
तो
कैसे लगेगा अंदर से
कभी नहीं सोचा ना
यह सब
पर
सोचो इस पर भी
जो सामने है
वो कैसा है
जब होंगे तुम दीवार पर
मंच पर
तुम्हारी यशोगाथा का वर्णन होगा
तुम तुम ना रहे जाओगे
एक विभूति बन जाओगे
और
अमर हो जाओगे
क्या मरने के बाद ही
अमर होता है आदमी
जीते जी क्यों नहीं