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कमसिन लड़की खीज रही है / यानिस रित्सोस / विनोद दास

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यह सोचिए कि वह कुछ और नहीं हो सकती थी – कुछ भी और
उसके सामने ख़ुद को निहारता वह अदृश्य शीशा है
जो उस लड़की के चलने के पेश्तर उसकी ठवन देख रहा है
और बाहर बगीचे में
उसकी सहेलियाँ उसे पुकार रही हैं
रस्सियाँ कूद रही हैं
पेड़ों के नीचे झूला झूल रही हैं
नीबू के फले-फूले गाछ के पीछे अपने वक्षों, काँखों, बालों को छिपा रही हैं
ऐसा लगता है कि वह कमरे में
भारी-भरकम दादा आदम के ज़माने की
पुरानी मशीन से आती सिलने की आवाज़ पर कान नहीं दे रही है
जहाँ दुल्हन के बिस्तर के लिए ठण्डी सफ़ेद चादरें करख़्त सख़्ती से
या यूँ कहें कि लगभग हिंसक रूप से सिली जा रही हैं
और सामने वह शीशा बारहा उसे दिखाता है
कि वह सुन्दर थी ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास