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कय गुने कलसा हे, कय गुने भार / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कय<ref>कितना</ref> गुने<ref>गुणित जैसे दुगुना, तिगुना, चौगुना आदि</ref> कलसा हे, कय गुने भार<ref>बोझ, वजन</ref>
बोल हे कलसवा हे, के<ref>कौन</ref> लेत भार॥1॥
छव गुने कलसा हे, नव गुने भार।
बोलथि<ref>बोलते हैं</ref> जनइया<ref>जनक</ref> रिखी<ref>ऋषि</ref> हम लेबो भार॥2॥
गंगा-जल पानी देबो, पुंगी-फल धान।
चउमक<ref>चतुर्मुख दीपक। कलसे के ऊपर जो दीपक रखा जाता है, उसमें चारों ओर मुँह होते हैं और हर मुँह में बत्ती जलती है</ref> बराय<ref>जलना, बलना</ref> देबो, सगरो<ref>सर्वत्र</ref> इँजोर<ref>प्रकाश</ref>॥3॥
धन<ref>धन्य</ref> अनपुरना<ref>अन्नपूर्णा</ref> देइ, धन रउरा भाग।
कलसा धराइ गेल<ref>रखा गया, स्थापित किया गया</ref> जनइया रिखी के मड़वा॥4॥
शब्दार्थ
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