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करके उपवास तू उसको न सता मान भी जा / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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कर के उपवास तू उसको न सता मान भी जा।
तेरे अंदर भी तो रहता है ख़ुदा मान भी जा।
सिर्फ़ करने से दुआ रोग न मिटता कोई,
है तो कड़वी ही मगर पी ले दवा मान भी जा।
गर है बेताब रगों से ये निकलने के लिए,
कर लहू दान कोई जान बचा मान भी जा।
बारहा सोच तुझे रब ने क्यूँ बख़्शा है दिमाग़,,
सिर्फ़ इबादत को तो काफ़ी था गला मान भी जा।
अंधविश्वास, अशिक्षा यही घर घुसरापन,
है ग़रीबी इन्हीं पापों की सज़ा मान भी जा।