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करके रुसवा मुझे ज़माने में / कविता विकास
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करके रुसवा मुझे ज़माने में
लग गए खुद को ही बचाने में
आदतों में मेरी तुम थे शामिल
वक़्त लंबा लगा भुलाने में
थक गईं इंतज़ार में आँखें
देर कर दी है तुमने आने में
थी बुलंदी पर मेरी शोहरत जब
इक हुए सब मुझे गिराने में
वो मनाएँ तभी मज़ा आए
अश्कों के मोती लुटाने में
इक अना साथ थी मेरे, वह भी
लो लुटा दी तुझे मनाने में