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करते रहेंगे हम भी ख़ताएं नई नई / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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करते रहेंगे हम भी ख़ताएं नई नई
तज्वीज़ तुम भी करना सज़ाएं नई नई
जब भी हमें मिलो ज़रा हंस कर मिला करो
देंगे फ़क़ीर तुम को दुआएं नई नई
दुन्या को हम ने गीत सुनाये हैं प्यार के
दुन्या ने हम को दी हैं सज़ाएं नई नई
ये जोगिया लिबास, ये गेसू खुले हुए
सीखीं कहां से तुम ने अदाएं नई नई
तुम आ गये बहार सी हर शय पे छा गई
मह्सूस हो रही हैं फ़ज़ाएं नई नई
आंखों में फिर रहे हैं मनाज़िर नऐ नऐ
कानों में गूंजती हैं सदाएं नई नई
गुम हो न जायें मंज़िलें गर्दो-गु़बार में
रहबर नये नये हैं दिशाएं नई नई
जब शायरी हुई है वदीअत हमें तो फिर
ग़ज़लें जहां को क्यों न सुनाएं नई नई
'रहबर` कुदूरतों को दिलों से निकाल कर
हम बस्तियां वफ़ा की बसाएं नई नई