करते हैं दिल के ज़ख्म तमाशाई से गुरेज़ 
यानी जनाब आपकी रुस्वाई से गुरेज़ 
अब सोचने में वक़्त हो बरबाद किस लिए 
तैराक हैं तो क्यों करें गहराई से गुरेज़ 
ख़ुद पर वो अगले वक़्त में आंसू बहाएंगे
वो लोग जिन को है अभी सच्चाई से गुरेज़ 
अब दूसरों का ज़िक्र ही करना फ़ुज़ूल है
ऐसे में जब कि भाई करे भाई से गुरेज़ 
कब तक लहूलुहान मनाज़िर को देखना
जी चाहता है कीजिए बीनाई से गुरेज़