भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करने को न कुछ काम रह गया / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करने को न कुछ काम रह गया
दुनियाँ में फ़क़त नाम रह गया

जो छोड़ गया सत्य की डगर
हो कर यहाँ बदनाम रह गया

अपने ही वास्ते जिया किया
इंसान वो बेनाम रह गया

छूटी वहाँ पतवार हाथ से
दो हाथ लबे बाम रह गया

चाहत की फ़ेहरिश्त थी बड़ी
मिलना मगर ईनाम रह गया

वो लूट गया इस कदर हमें
बस पास इक छदाम रह गया

चुकता किया हिसाब था सभी
अब कैसा ये अंजाम रह गया