भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करमजली / राजेश कुमार व्यास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मां की कोख जन्मी
बहुत सी गालियां खाती
नन्हीं सी लड़की
देखती है अपने भाई को
मां से ढ़ेर सारा प्यार पाते।
अलसूबह उठ
लग जाती है लड़की
घर के बहुत सारे कामों में
काम के साथ-साथ
मां के ताने, उलाहने
‘करमजली
तूझे यही घर मिला था
जन्म लेने को....’
अपने फूटे भाग को रोती
सारे ताने सुनती है लड़की।
एक दिन
लड़की चली जाती है
अपनी ससुराल
भूल जाती है लड़की
अपना बालपन
वह नहीं जानती
कैसा होता है बचपन
और
फिर एक दिन
लड़की देती है जन्म
अपनी कोख से
नन्हीं सी एक लड़की को
फिर से वही ताने,
वही उलाहने
‘करमजली
तूझे यही घर मिला था
जन्म लेने को....।’