भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करमा गीत-3 / छत्तीसगढ़ी
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
हां हां रे रतन बोइर तरी रे
गड़े है मैनहरी कांटा
रतन बोइंर तरी रे।
ओही मा ले नहकयं डिंडवारे, छैलवा
हेर देबे मैनहरी कांटा
रतन बोइर तरी रे।
कांटा हेरवनी का भूर्ती देबे,
हेर दहे मैनहरी कांटा
रतन बोइर तरी रे।
ले लेबे भइया थारी भर रुपइया,
हेर देबे मैनहरी कांटा
रतन बोइर तरी रे।
थारी भर रुपइया तोरे धर भावय
नइ हेंरव मैनहरी कांटा
रतन बोइर तरी रे।
ले लेबे भइया लहुरि ननदिया।
हेर देबे मैनहरी कांटा
रतन बोइर तरी रे।
लहुरि ननदिया तोरे धर भावय
नइ हेंरव मैनहरी कांटा
रतन बोइर तरी रे।
ले लेबे, छैलवा मोरे रस बुंदिया
हेर देहंव मैनहरी कांटा
रतन बोइर तरी रे।