करहु कलेऊ कान्ह पियारे / सूरदास
करहु कलेऊ कान्ह पियारे सूरदास श्रीकृष्णबाल-माधुरी राग बिलावल
करहु कलेऊ कान्ह पियारे !
माखन-रोटी दियौ हाथ पर, बलि-बलि जाउँ जु खाहु लला रे ॥
टेरत ग्वाल द्वार हैं ठाढ़े, आए तब के होत सबारे ।
खेलहु जाइ घोष के भीतर, दूरि कहूँ जनि जैयहु बारे ॥
टेरि उठे बलराम स्याम कौं, आवहु जाहिं धेनु बन चारे ।
सूर स्याम कर जोरि मातु सौं, गाइ चरावन कहत हहा रे ॥
भावार्थ :-- `प्यारे कन्हाई! कलेऊ कर लो ।' (यह कह कर माता ने) हाथ पर मक्खन रोटी दे दी ( और बोलीं)`लाल ! तुम पर बार-बार बलि जाती हूँ, खा लो! सबेरा होते ही सब गोपबालक आ गये थे, तभी से द्वार पर खड़े तुम्हें पुकार रहे हैं । जाओ, गाँव के भीतर खेलो ! अभी तुम बच्चे हो, कहीं दूर मत जाना ।'(इतने में) बलराम जी श्याम को पुकार उठे -`आओ, वन में गायें चराने चलें ।' सुरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर दोनों हाथ जोड़कर माता से गाये चराने की आज्ञा के लिये अनुनय-विनय कर रहे हैं ।