भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कराकास / एउखेनिओ मोनतेखो / राजेश चन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

इमारतें इतनी ऊँची हो गई हैं
कि कुछ भी देखा नहीं जा सकता मेरे बचपन का ।
मैंने खो दिया है अपना आँगन इसके मन्थर बादलों के साथ
जहाँ रोशनी गिरा दिया करती थी सारस के पँख,
मिश्र की मुलायम शुद्धताएँ ।

मैंने खो दिया है
अपना नाम और सपना घर का ।

कठोर ढाँचे इमारतों के, मीनारों पर मीनारें
छिपा रही हैं हमारे पहाड़ों को हमसे ।
कोलाहल बढ़ता हुआ हज़ार मोटरगाड़ियों का प्रत्येक कान के लिए,
चिंघाड़ते हज़ार पहियों का समुच्चय प्रत्येक पांव के लिए,
उनमें से प्रत्येक जानलेवा ।

लोग भागते हैं उनकी आवाज़ सुनकर
लेकिन आवाज़ें हैं कि भटकती हैं
टैक्सियों का पीछा करती हुईं ।
कितनी-कितनी दूर थेब्स, ट्रॉय, निनवेह से
या कि किरचों से उनके सपनों की,
कराकास, तुम कहाँ हो ?

मैंने खो दी है अपनी परछाईं
और अहसास इसकी शिलाओं का ।
कुछ भी तो दिखायी नहीं पड़ता अब मेरे बचपन का ।

मैं घूमता-फिरता रहता हूँ इसकी गलियों से होकर
एक दृष्टिहीन आदमी की तरह,
हर एक दिन होता हुआ कुछ और भी अकेला ।

इसका विस्तार वास्तविक है,
अक्खड़ और ठोस कँक्रीट का ।
सिर्फ़ मेरा ही इतिहास बन कर रह गया है एक झूठ ।