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कर्त्तव्य / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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सुन्दर देह सु आन पदारथ, पाप अकारथ काह वहो।
जो धन पा वहु खाहु खियावहु, कोहे अनारि सँभारि गहो॥
धरनी फिरि आवन दुर्लभ है, अव गोइनिको एकले निबहो।
दिन चारिको मर्म कहा भुलनो, भइ! राम कहो भई! राम कहो॥1॥