कर्म-मथानी में / मनोज जैन 'मधुर'
छोटी मोटी बातों में मत
धीरज खोया कर।
अपने सुख की चाहत में मत
आँख भिगोया कर।
काँटों वाली डगर मिली है
तुझे विरासत में।
छिपी हुईं है सुख की किरणे
तेरे आगत में।
देख यहाँ पर खाई पर्वत
सब है दर्दीले।
कदम कदम पर लोग मिलेंगे
तुझको दर्पीले।
कुण्ठाऒ का बोझ न अपने
मन पर ढोया कर।
बेमानी की लाख दुहाई
देंगे जग बाले।
सुनने से पहले जड़ लेना
कानो पर ताले।
मुश्किल से दो चार मिलेंगे
तुझको लाखों में।
करुणा तुझे दिखाई देगी
उनकी आँखों में।
अपने दृग जल से तू उनके
पग को धोया कर।
कट जायेगी रात सवेरा
निश्चित आएगा
जो जितनी मेहनत करता
फल उतना पायेगा।
समय चुनोती देगा तुझको
आगे बढ़ने की।
तभी मिलेंगी नई दिशाएं
आगे बढ़ने की।
मन के धागे में आशा के
मोती पोया कर।
वीज वपन कर मन में साहस
धीरज द्रणता के।
छट जायेंगे बादल मन से
संशय जड़ता के।
सब को सुख दे दुनियाँ आगे
पीछे घूमेगी।
मंज़िल तेरे खुद चरणों को
आकर चूमेगी ।
कर्म मथानी से सपनो को
रोज़ बिलोया कर ।
छोटी छोटी बातों में
मत धीरज खोया कर।