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कर्म आ लक्षण / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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कर्म-धर्म नैसर्गिक आचार
भोजन-भात परिवेश विचार
इएह थिक लक्षणक सचार
देखू ने मधुमेहधारी लोक सभ केँ
मधुक सेवन बन्न भेल
चिष्टान्न मुरहन्न भेल
सचार बदलल
विचार बदलल
व्यंजन बदलल
अभिव्यंजन बदलल
बाजब बदलल
आहार बदलल
मैथिल लखैत चिष्टान्न
मैथिल चखैत मिष्टान्न
मैथिल चिबबैत पान
मैथिल फँकैत लावा मखान
बाजब मधुगर
नहि करूगर
हम सभ छी दीन
मुदा! मझिनी महीन
नहि रहल गेल
ठामहि कंठ सँ बहार भेल
यौ नहि करू अकरहरि
कटितो छी छोटकी छुट्टी जकाँ
दंश मरै छी लहरचुट्टी जकाँ
जाइ छी कुशेश्वर
बजै छी रामेश्वर
कथनी आ करनी मे नहि मेल
सम्मानक लेल रेलमरेल
देखने होयब बेल
ऊपर सँ कठोर मुदा मीठ मांसल
अंश अंश सुआद भरल
कोइली त' कौआ जकाँ
सब किछु खाइछ
मुदा बोल अनमोल
कौओ मे काग आ काक
एकटा करय काँउ
माय करथि ठाउँ
ताकथि पिरही
पाहुनक बाट तकैत
दोसर काकक काँउ
निन्न उड़ा दैछ बाउ
बाजब एक आ एक सचार
तखन कोना विलग शिष्टाचार
अलग व्यवहार
अलग देखबाक विचार
सुग्गा खाइत करूगर
बोल केहन मिठगर!
रैदास छिलैत छलथिन चाम
कंठ मे हरिनाम
जपैत छलाह आठो याम
चामहि मे सभ धाम
ओहि ठाम एलथिन श्याम
टिकने तकैत राम
रावण मदोदरीक सहधर्मी
कोना बनि गेल अधर्मी?
तें हियाक इजोत जगाउ
बाती जकाँ
अपना केँ जड़ाउ
अर्चिस बरसाउ
कर्म आ लक्षण
नहि विवर्त नहि भक्षण
सभ दैहिक संस्कार
कर्म परिस्थिक देल
धर्म अपन भेल
अपने कएल
अपनहि लेल
तें राखू कथनी आ करनी मे
अरजि- अरजि करू संचित
सम्यक धर्मी तालमेल
जे किछु सकारय तन
वेअह ताकू व्यंजन
तकरे करू ग्रहण
साफ़ राखू मन
नवसंचारक सृजन
सुमार्ग स्मरण
इएह जीवन
विवर्तक लक्षण
कर्मक आवरण
मानवताक अभरन