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कर दे मौला पूरी रोज़ेदार की मंशा / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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कर दे मौला पूरी रोजेदार की मंशा।
है हमारे दिल में दीदे-यार की मंशा।
रंजो ग़म में, होश में रह, लीजिये इमदाद,
लीजिये पहले समझ उपकार की मंशा।
पेश्तर हल के पहेली गर उलझ जाये,
ठीक से समझो मियाँ दरबार की मंशा।
उसका बेड़ा पार होगा शर्तिया समझो,
जिस पर हो जाये अगर सरकार की मंशा।
हुस्न वालों की करे परवाह हर कोई,
कौन पूछे इश्क़ के बीमार की मंशा।
खु़श जईफी में वही वालिद मिले हमको,
भाँप जाते हैं जो बरखुरदार की मंशा।
जीत लेता है वही दिल इश्क़ में ‘विश्वास’,
जिसने रख ली बा-ख़ुशी दिलदार की मंशा।