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कर रैन बसेरा होया सबेरा, ले ज्या हँस उडारी तूँ / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल

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कर रैन बसेरा होया सबेरा, ले ज्या हँस उडारी तूँ,
पानदान म्हं धरे रहैंगे, जो खाता पान सुपारी तूँ।। टेक ।।

फिर पछतावै आगै आवैं, खोटे कर्म करोयड़ बावळे,
डाकू लुटैं टुटैं फुटैं अघ से, घट भरोयड़ बावळे,
आग लागज्या जल म्हं बहज्या, रहज्या धरी धरोयड़ बावळे,
दिन धोळी गोळी लागै, हों सून्ने खेत चरोयड़ बावळे,
क्यां पै करै मरोड़ बावळे, या ले रह्या चीज उधारी तूँ।।

के संग ल्याया के लेज्यागा, जा गा खुली मुट्ठी रै,
चारों पल्ले झट झड़काले, ना छल्ला रहै अंगुठी रै,
सांस मार नर क्या कर सकता, झाल भतेरी उठी रै,
भर्म भूल मैं सो खो बैठ्या, या वस्तु बड़ी अनुठी रै,
तेरी झूठी टाली बिलकुल खाली, खुड़का रहया पुजारी तूँ।।

वापिस शब्द नहीं फिर सकते, रसना तैं लकड़े पीछै,
शूरा शेर समर के अन्दर, हटता ना अकड़े पीछै,
चलती का नाम गाडी पड़ी, लकड़ी कौण कहै छकड़े पीछै,
मूर्ख मूंज गुलाम काम दें, कूटे तै तकड़े पीछै,
पकड़े पीछै सिर कूटै, ना छूटै ठग चोर जुआरी तूँ।।

शंकरदास प्रकाश दर्शता, मिलगी जगह ठिकाणे की,
केशोराम नाम रट झट, पट कोशिस कर पद पाणे की,
गुरू कुन्दनलाल दया कर दे दी, चाबी भजन बणाणे की,
बैण्डनाथ का हाथ शीश पै, आज्ञा हरि गुण गाणे की,
नन्दलाल लाज रख बाणे की, कर कृपा कृष्ण मुरारी तूँ।।