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कर ले नै कबूल काले मनै ल्या के दिया रै / मेहर सिंह

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वार्ता- रानी के पास तो एक पाई भी नहीं थी वह सवा रुपया कहां से देती। उस के पास तो कफन के लिए भी लता नहीं था। रानी कहती है कि ये तेरा भी बेटा है क्या इस का दाह संस्कार नहीं हो सकता। रानी बेबस लाचार थी। सवा रुपया कर के बदले अपना चीर दे देती है। इस बात पर राजा हरिश्चन्द्र के दिल को भारी ठेस लगती है और वह कालिए को जा कर क्या कहता है-

कांशी जी का रूल तेरे मरघट का मशूल
कर ले नै कबूल काले मनै ल्या के दिया रै।टेक

सुणैं तो सुणाऊं काले उस दुखिया का हाल,
चीर तो मैं ले आया कर दिये जुल्म कमाल,
शमसाणां म्हं रोवै थी कहै हाय मेरा लाल
डाटे तैं बी डटी कोन्या उसका बेटा मरग्या काल,
बेवारिस थी खास, ल्याई शमशाणां म्हं ल्हास
पिसा था नहीं पास, मनैं चीर ले लिया रै।

के बुझैगा हाल काले जाता ना कहया
दुखयारी नै दुख और भी होग्या नया
बेवारस की ईश्वर नै भी आई ना दया
एक ही था बेटा उसका वो भी ना रह्या
उसकी खोट ना खता, कुछ मनै दी सता
बुझा दी बेटे की चिता करकै बज्र का हिया रै।

दुखयारी के दुःख नैं देख कै सोच करूं था
कर भी कोन्या छोड़्या तेरे तै डरूं था
मरणे के नां का काले त्यार फिरूं था
उस लड़के की चिता म्हं जलकै आप मरूं था
लिया हाथ पकड़ कै डाट मेरा आगा गई काट
उसकी माता गई नाट ना तो खोद्यूं हे जिया रै।

गुरू लखमी चन्द की मेर मेहरसिंह ज्ञान घुंटग्या
जिसकी छां मैं बैठया करता वो रूख टूटग्या
नाम था हरिश्चन्द्र आज भ्रम फूटग्या
एकलौती कै एक लाल था उसने नाग चूटग्या
इब आ लिया बख्त आखिर उसका तार लाया चीर
वा सै मुझ दुखिया की बीर मैं सूं उसका पिया रै।