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कलकत्ता / शंख घोष / सुलोचना वर्मा / शिव किशोर तिवारी

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हे बापजान
कलकत्ता जाकर देखा हर कोई जानता है सब कुछ
सिर्फ़ मैं ही कुछ नहीं जानता
मुझे कोई पूछता नहीं था
कलकत्ता की सड़कों पर भले ही सब दुष्ट हों
ख़ुद तो कोई भी दुष्ट नहीं

कलकत्ता की लाश में
जिसकी ओर देखता हूँ उसके ही मुँह पर है आदिकाल का ठहरा हुआ पोखर
जिसमें तैरते हैं सड़े शैवाल

ओ सोना बीबी अमीना
मुझे तू बाँधे रखना
जीवन भर मैं तो अब नहीं जाऊँगा कलकत्ता।

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा और शिव किशोर तिवारी

(‘आदिम लतागुल्ममय' (1972) नामक संग्रह में संकलित, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - कोलकाता)