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कलाकार की स्वीकारोक्ति / बाद्लेयर / मदन पाल सिंह

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Le confiteor de l’artiste<ref>कला और सौन्दर्य के सम्बन्ध व उनके अन्वेषण में एक कलाकार उनकी अस्पष्टता और अनन्तता से किस तरह आक्रान्त हो सकता है । कलावादियों की रचनाओं में इस आत्मसंघर्ष को देखा जा सकता है । ईश्वर विहीन इस रचना में प्रकृति ही यहाँ कवि की प्रतिद्वन्द्वी बन जाती है । कवि ने एक ऐसे चितेरे के रूप में अपनी मनःस्थिति को स्वीकार किया है, जो सुन्दरता को तीव्रता से महसूस करते हुए इससे सामंजस्य महसूस करता है । हालाँकि वह इसे शब्दों में समझाने और इसका वर्णन करने का प्रबंध नहीं कर सकती । यह एक विफलता की अभिव्यक्ति है, एक आदर्श दुनिया के सौन्दर्य का अनुवाद करने में भाषा की विफलता । ऐसे में एक ख़ास उदासी भरी तिक्तता कला के आदर्श का अतिक्रमण करने लगती है।</ref>

पतझड़ की ऋतु के दौरान दिनों का अन्त कितना भयावह व तीख़ा होता है ! उफ़्फ़ ! यह तीख़ापन दर्द की हद तक पहुँच जाता है, क्योंकि कुछ मनभावन सम्वेदनाओं की अनियमितता उनकी तीव्रता को अलग नहीं करती है. तथा असीम-अनन्त सत्ता की तुलना में और कोई दूसरा भेदने वाला बिन्दु नहीं है ।

आकाश और समुद्र की असीमता में अपनी दृष्टि को सराबोर करना भी एक बहुत बड़ी ख़ुशी है ! एकान्त, मौन, नीलाकाश की अतुलनीय शुद्धता ! अनन्त क्षितिज पर डगमगाती एक छोटी-सी पाल नौका, जो अपनी लघुता और अपने अलगाव के कारण मेरे अपरिवर्तनीय अस्तित्व, प्रफुल्लित, उद्दाम भाव के नीरस माधुर्य का अनुकरण करती है । ये सभी चीज़ें मेरे माध्यम से सोचती हैं या मैं उनके माध्यम से अपनी सोच को विस्तार देता हूँ (क्योंकि मन की लहर की भव्यता में ‘मैं’ और मेरा ‘मैं’ तेजी से विलीन हो जाते हैं !). मैं कहता हूँ कि वे सोचती हैं, हालाँकि ऐसा वे संगीतमय और सुरम्य रूप से, बिना व्यंग्य के, बिना तर्क के, बिना किसी काट-छाँट के करती हैं ।

चाहे ये विचार मेरे अन्तर से निसृत हो रहे हों या कलाओं से बाहर आ रहे हों, लेकिन वे जल्द ही बहुत तीव्र हो जाएँगे । उथल-पुथल में ऊर्जा, बेचैनी और सकारात्मक पीड़ा पैदा करती है । मेरी नसें भी केवल तनावपूर्ण और दर्दनाक कंपन देती हैं ।

और अब आकाश की गहराई मुझे कष्ट देती है । इसकी स्पष्टता मुझे चिढ़ाती है । समुद्र की बेरुख़ी और दृश्यों की अपरिवर्त्यता मेरे अन्दर घृणा व प्रतिकार उत्पन्न करती है । मुझे विद्रोही बना देती है. …आह! क्या हमें अनन्त काल तक पीड़ित रहना चाहिए या सुन्दरता से सदा के लिए विमुक्त हो जाना चाहिए ? प्रकृति, तुम निर्दयी जादूगरनी और सदा विजयी होने वाली प्रतिद्वन्द्वी हो । मुझे अकेला छोड़ दो ! मेरी इच्छाओं और मेरे गर्व को फुसलाकर ऊपर उठाना बन्द करो ! सौन्दर्य का अध्ययन एक द्वन्द्व है और इसमें कलाकार पराजित होने से पहले ही भयभीत होकर चिल्लाता है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मदन पाल सिंह

शब्दार्थ
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