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कलियुगिया धर्म / अमरेन्द्र
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कलियुग का यह धर्म कठिन है, काल भयावह यम
धारण करके नर लगता हैµनरसिंह का अवतार
पिस्टल से कम नहीं धर्म है, शान चढ़ी तलवार
जिसका नशा न उतरे; ऐसा बोदका, ह्निस्की, रम ।
किसकी हिम्मत धर्म विरस को बदनियती से रोके
इसकी एक हँसी पर पूरी बस्ती तक ढह जाती
नाश जहाँ तक दिखता इसकी माया है दिखलाती
विधि के सारे विधि-विधान को रख देता है धो के ।
द्वेष-दुखों का पोथी-पतरा, जंतर-मंतर-राज
अटका-मटका स्वाहाओं का, फूँक-झाड़ का चांटा
फूस-फास के कास-कूस का गड़ने वाला काँटा
छोटा जीवन गौरैया-सा, धर्म घूरता बाज ।
गुरु अर्जुन और तेग बहादुर की आँखें क्यों लाल
जिसको धर्म कहो तुम, वह तो ‘बाला’ पर है व्याल।