Last modified on 5 अप्रैल 2021, at 00:07

कल्पना तो सोच की अनुमानता है / जतिंदर शारदा

कल्पना तो सोच की अनुमानता है
व्यक्ति तो आभास को पहचानता है

अपने पंखों को सबल जो मानता है
व्योम के विस्तार को क्या जानता है

सुमन की नवनीत की ज्योत्सना की
आपके स्वरूप में विद्यमानता है

प्रेम में सौंदर्य में समता हो कैसे
प्रिय प्रेयसी में बहुत असमानता है

मैं नहीं तो जगत का अस्तित्व कैसा
साक्षी से ही साक्ष्य की प्रमाणता है

ज्ञान मंथन से मिला न कोई मोती
ज्ञान ही सबसे बड़ी अज्ञानता है

सपने चकनाचूर हो जाते हैं पल में
तोड़ देती हृदय की पाषाणता है

अपने घर की प्यारी चौखट जिसने छोड़ी
खाक दुनिया की बेचारा छानता है

विघ्न बाधाओं से डरना किस लिए
प्रेरणा का स्रोत तो व्यवधानता है

अंहकारी का अहम् तो क्षुद्रता है
सज्जनों की नम्रता महानता है