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कल, दुर्गा की / केदारनाथ अग्रवाल
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कल,
दुर्गा की
भुवन-मोहिनी
दिव्य मूर्तियाँ
जल-समाधि ले
चली गईं संसार से
शक्ति-शौर्य-साहस-संगोपन
हुआ समर्पित काल को।
नगर
पुनः
अब नगर हो गया
पहले जैसा
अपनी चाल चला फिर पैसा
दाँव-पेंच अधिकाई
चक्कर-मक्कर की बन आई।
रचनाकाल: १८-१०-१९९१