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कल कल छल छल सरिता का जल / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
कल कल छल छल सरिता का जल
बहता छिन छिन!
मर्मर सन सन वन्य समीरण
से जाते दिन!
कल का क्या दुख? आज से विमुख
मत हो अंतर!
हृदय द्विधा हर, प्रणय सुधा कर
पान निरंतर!