भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कल कल छल छल सरिता का जल / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कल कल छल छल सरिता का जल
बहता छिन छिन!
मर्मर सन सन वन्य समीरण
से जाते दिन!
कल का क्या दुख? आज से विमुख
मत हो अंतर!
हृदय द्विधा हर, प्रणय सुधा कर
पान निरंतर!