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कल की यादों की कसक है कि बताए न बने / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

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कल की यादों की कसक है कि बताए न बने
गुज़रे लम्हों की किसी तौर बुलाए न बने

जब चला जाऊँगा मैं याद बहुत आऊँगा
सामने हूँ, न कहो आज सताए न बने

प्यार करने के लिए दोस्तो मुहलत है किसे
आज दो वक़्त की रोटी तो कमाए न बने

बे-रदीफ़ आप कहें भी तो ग़ज़ल हो जाए
शे’र कोई भी बिना काफ़िया लाए न बने

हर नये शाह ने लिखवाया है फिर से इतिहास
सच्चे किस्से न यूँ तारीख़ में आए, न बने

उस से कहना तो बहुत कुछ है मगर क्या है मजाल
एक पल भी तो उसे पास बिठाए न बने

उन की हैं अपनी हदें मेरे मसाइल है मेरे
मुझ से रोते न बने, उन से हँसाए न बने

टूट जाएँ न कहीं देखना आपस के 'यक़ीन'
घर उजड़ जाए जो इक बार, बसाए न बने