कल भोर में / वीक्तर हिगो / मदन पाल सिंह
कल भोर में रोशनी जब गाँव को नहलाती
मैं निकल पड़ूँगा, देखना तुम<ref>वीक्तर हिगो की बड़ी बेटी लिओपॉल्दीन के नाम जिसकी उन्नीस वर्ष की आयु में अपने पति शार्ल वॉकेरी के साथ एक नौका दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।</ref>, मेरा इन्तज़ार बरसों से करतीं,
जंगल से मैं गुज़रूँगा, पर्वत को पार कर जाऊँगा
तुमसे दूर नहीं रह सकता, मैं पास तुम्हारे आऊँगा।
मैं आगे बढ़ता जाऊँगा अपनी सोच में डूबा-सा
इधर-उधर नहीं देखूँगा, न आवाज़ों में खोया-सा।
एक अकेला, अनजाना, कमर झुकी हुई हाथ बन्धे हुए
दु:ख में मैं डूबा, जब दिन ग़मों में रात लगे।
मैं नहीं देखूँगा सूर्यास्त, साँझ जब घिर जाएगी
नहीं देखूँगा नौका-पाल जो आरफ्लर<ref>उत्तरी फ्रांस में आव्र के पास एक छोटा क़स्बा, जो पहले एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक बन्दरगाह था।</ref> को वापस आएगी।
जब पहुँचूँगा उसकी क़ब्र पर सिजदा मैं कर पाऊँगा
हरे उक्स<ref>सदाबहार पवित्र कँटीली झाड़ी और विभिन्न रंगों के नाजुक पुष्प वाला एक पौधा।</ref>, खिले ब्रुऐर<ref>सदाबहार पवित्र कँटीली झाड़ी और विभिन्न रंगों के नाजुक पुष्प वाला एक पौधा।</ref> का गुच्छा मैं रख आऊँगा।
मूल फ़्राँसीसी से अनुवाद : मदन पाल सिंह