कवन दाइ पुनौती सूत काटल, भल रेतल हे / अंगिका लोकगीत
उपनयन-संस्कार संपन्न होने पर ब्रह्मचारी विद्याध्ययन के लिए तिरहुत को प्रस्थान करता है और उसके बाद शास्त्रार्थ करने का भी विचार रखता है। तिरहुत प्राचीन काल से ही विद्या का प्रमुख केंद्र रहा है।
इस गीत में ब्रह्मचारी द्वारा ग्वाले के घर का पता पूछने का उल्लेख है। ऐसी प्रथा है कि उपनयन के समय ब्रह्मचारी ग्वाले के घर जाकर भोजन करता है। उपनयन के बाद वह इन लोगों के घर का पकाया हुआ अन्न ग्रहण नहीं करता।
कवन दाइ पुनौती<ref>पुनीत; पवित्र; पुनीत; अवसर के लिए; पूनी, जो रूई की बनाई जाती है और जिससे सूत निकलता है।</ref> सूत काटल, भल रेतल<ref>अच्छी तरह चिकना करना</ref> हे।
कवन बाबा बाँटलनि जनेउवा, कवन बरुआ पहिरल हे॥1॥
कनिया दाय पुनौती सूत काटल, भल रेतल हे।
दुलरैते बाबा बाँटलनि जनेउवा, दुलरैते बरुआ पहिरल हे॥2॥
पिन्हिय ओढ़िय बरुआ ठाढ़ भेलै, पूछ लागल अहेर<ref>अहीर</ref> गुवाल<ref>ग्वाला</ref>, कते बरुआ बिजय हे।
तिरहुते बसथिन पंडितबा लोग, वहै बाबा बेद सुनाबै हे।
वहै बरुआ बिजय भेल हे॥3॥