भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कवन दादा मेथिया बेसाही देल / अंगिका लोकगीत
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
कवन दादा मेथिया<ref>एक शक, जिसके दाने मसाले और दवा के काम में आते हैं</ref> बेसाही<ref>खरीद</ref> देल, कवन दादी मेथिया पिसन<ref>पीसने के लिए</ref> गेल।
अपन दादा मेथिया बेसाही देल, कनिया दादी मेथिया पिसन गेल॥1॥
कहँमाहिं मेथिया उपजि गेल, कहँमाहिं मेथिया महकि गेल।
कवन पुर में मेथिया उपजि गेल, कवन गामे मेथिया महकि गेल॥2॥
कवन चाचा हे मेथिया बेसाही देल, कवन चाची मेथिया पिसन गेल।
अपन चाचा मेथिया बेसाहि देल, कनिया चाची मेथिया पिसन गेल॥3॥
येहो मेथिया कहँमाहिं उपजि गेल, कहमाहिं मेथिया गमकि गेल।
तिरहुत मेथिया हे उपजि गेल, पछिमहिं मेथिया गमकि गेल॥4॥
शब्दार्थ
<references/>