भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कवयित्री नहीं हूँ / पूजा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
मैं नियमों के बन्धन से परे
आकाश धरती की दूरी
नाप लेती हूँ क़लम से
दसों दिशाओं को
मध्य में समेटती
हथेलियों से विस्तार देती हूँ
बो देती हूँ हरियाली
मरूथल में
खिला देती हूँ मुस्कान
भूख से तड़पते चेहरों पर
रस छन्द अलंकारों से अनभिज्ञ
व्याकरण की परिधि से परे
रचना करती हूँ
इसीलिए
रचनाकार हूँ
कवयित्री नहीं हूँ...।