भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कवायद / प्रांजल धर
Kavita Kosh से
शरियाली* से वशिष्ठ आश्रम या कामाख्या के
बीच कीचड़ भरे रास्ते एक संकेत करते हैं.
न भी करते हों तो मयूरद्वीप ज़रूर करता है.
अगर वह भी अक्षम हो
तो दौल के बाहर मारकस बजाता अन्धा
जतिंगा पहाड़ियों की उजड़ी चोटियों-सा
कुछ कह रहा है.
जीवन ही नहीं, प्रगति भी कितनी निस्सार है!
विदशी कार से रौंदकर मारे गये
एक आवारा कुत्ते के सपनों-सी अर्थहीन!
ज़िन्दगी इतनी महीन!!
कि कोई देख भी न पाए
मदद तो दूर की बात है.
हर जगह दिन है
बस ज़िन्दगी में रात है.
क्या ये संकेत सुनकर
कभी अरुणोदय की हालत आएगी!
पता नहीं.
हर जगह किन्तु-परंतु-शायद है
इसीलिए हर संकेत एक व्यर्थ की कवायद है.
(असमिया भाषा में शरियाली* का मतलब चौराहा होता है.)