कविताएँ और कवि / येव्गेनी येव्तुशेंको
अपनी कविताएँ फेंकते नहीं कवि
कविताएँ फेंकती है कवियों को,
जब वे कायरतावश एक बार में ही
काट डालते हैं मस्तूल हवा के नीचे से ।
समीक्षा की दयनीय गुल्लक को
नींद में भी लगाए रखते हैं अपने गले से,
बहुत पहले काट चुके हैं अपने मस्तूल
दूसरों की मेकअप की आरी से ।
जो करते हैं गद्दारी और धोखा
अपनी कविता, अपने आदर्शों के साथ,
कविताएँ तो कविताएँ,
पूर्ण विराम भी नकारते हैं उन्हें ।
सुस्त सफ़ेद चर्बी से
बेमकसद बना एक शरीर
कोशिश करता है विश्वास दिलाने की
कि ये कविताएँ हैं और लिखी हैं उसी ने ।
कटा हुआ मस्तूल तो कोई झण्डा नहीं होता,
किसी की कभी कोई सेवाएँ रही हों
इसका हमारे व्यवसाय में महत्त्व नहीं ।
सबसे भयानक जो हो सकता है हमारे साथ
वह है उस्ताद कहलाना अपने हुनर कर ।
ज़रूरत से ज्यादा बोलना
बदतर है चुप रहने से
ज़्यादा ऊपर उड़ने का नतीजा
होता है गिरना उतने ही ऊपर से,
बार-बार जन्म लेती रहेंगी
न सम्भलने पर
हमारी ये वाचाल क्षुद्रताएँ ।
चूसनियों से थूकते हुए
हमारे विरुद्ध कविताएँ घोषित करती हैं युद्ध,
जैसे बच्चे वंचित करते हैं पिताओं को पितृत्व से
इसलिए कि बच्चों के योग्य होते नहीं पिता ।
कायर, गोबर या भूसा बन जाने पर
हममें से किसका क्या महत्व !
नहीं रोएँगी हमारी कविताएँ
परायी लगेंगी उन्हें हमारी क़ब्रें ।