भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविताएं और मै / निमिषा सिंघल
Kavita Kosh से
कविताओं ने छुपा लिया है
जब से मुझे अपने आंचल में
सारा अवसाद जाता रहा
जैसे आसमान तले चिल्लाकर
निकाल दी जाती है भड़ास
गुम हो जाती है आवाज़ हवा के साथ
जैसे ओढ़ लिया हो
स्वयं ही
कविताओं ने
मेरे भीतर का कोलाहल।
जैसे समुद्र छिपा लेता है सारे शोर
नदियों, जीव-जंतुओं के
कविताएँ भी मेरे लिए समुंद्र से कम न थी!
मैं भी कविता होना चाहती हूँ।