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कविताक मृत्यु / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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कविता सुनबाक हेतु
बैसल छी अपने सभ
किन्तु हम सुनायब
ई परम सुखद समाचार।
सुखद कही, शुभद कही,
हमरा लय सैह थीक,
भय सकैछ अहँक हेतु
एहिसँ किछु भिन्ने हो,
सरलो हो, सड़लो हो
सुनलो हो, जनलो हो,
नोन-तोल सनलो हो,
भय सकैछ पलखति बिनु
पढ़ली पर बिसरल हो,
बुद्धिकेर बटुआसँ
चुप्पे चुप ससरल हो,
थीक मुदा
एक प्रमुख चिन्तनीय समाचार।
अपनोकेँ सुनल होयत
संसारक शक्तिमान देश सभ
विदेशकेर रक्षा लेल
आतुर अछि,
नहि तँ आशंका जे-
विश्वशान्ति चटपटमे
खतरामे पड़ि जायत,
दोसर आशंका जे
मानवता मरि जायत,
तखन फुजल पाड़ा सभ
सगर खेत चरि जायत,
सम्भव थिक धुरी छोड़ि
धरती से ससरि जायत,
ताहि हेतु शक्तिक
सन्तुलने आवश्यक अछि।
एकक भय दोसरकेँ
रखतै आतंकित तँ
एक नहि दोसरा पर
कय सकते आक्रमण
तेँ बनाय एटम, हाइड्रोजनबम
आदिआदि, कयकय विस्फोट
अपन शक्तिकेँ नपैत अछि,
कृत्रिम उपग्रहसँ अन्तरिक्ष बाट पकड़ि
धरतीकेर लोक
चन्द्रलोककेँ टपैंत अछि।
प्रकरण थिक टोह
जाहि प्रकरणमे काव्य-गगन
बहुती उपग्रहसँ सम्प्रति आच्छन्न अछि,
चक्कर ओ मारि रहल
गुह्यक अन्वेषणमे
अर्थ गुप्त, भाव गुप्त,
रस-अलंकार गुप्त
रखने छल नुका नुका
पूजीपति काव्य ग्रन्थ,
अलंकार, आभूषण,
वृहत कोष संग्रह कय
रखितो पर अपनाकेँ मानै’ छल मटोमाट।
ज्ञाते ने एकरा जे
क्रान्तिक युग धुआँधार
बदलि रहल विश्वभरिक
परिभाषा, अभिलाषा,
रीति-नीति पद्धति
ओ सभ पुरान मान्यता।
भ्रान्तिक अन्हार बीच
क्रान्तिक आह्वान सूनि,
शान्तिक सुरक्षा लय
साहित्यक माथे पर
अणुबम विस्फोट भेल।
किछु विधा नुकाय रहल,
किछु विधा पड़ाय गेल,
किन्तु पड़लि चोटे पर
कविता आ कथा दूनू
कथा ते पङड़ाइत कहुना
जान टा बचौने अछि,
कविता बेचारी किन्तु
मारलि गेलि अनचोके।
मारलि गेलि कविता
आ मरि गेलि कविता तँ
कवियोकेर जान छुटल
पिंगल उनटयबासँ।
सम्प्रति तँ कविताकेर
अंग-अंग चीरि फाड़ि,
डाक्टरेट पयबामे
लागल छथि अनुसन्धाता
मम्मटसँ अम्मट
घोरबा रहला प्रेमसँ
दण्डी छथि दण्डित
आ विश्वनाथ?
ज्ञानवापी मध्य कूदि
भीतरसँ
टुकटुक तकैत छथि।
पिंगल सँ पिण्ड छुटल
परम सुखद समाचार
हमरालय सैह थीक,
भय सकैछ अहाँ हेतु
एहिसँ किछु भिन्ने हो,
सरले हो, सड़ले हो,
मनसँ उखड़ले हो,
सुनले हो, जनले हो,
नोन-तेल सनले हो
भय सकैछ पलखति बिनु
पढ़ले पर बिसरल हो,
बुद्धिकेर बटुआसँ
चुप्पे चुप्प ससरल हो।