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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 6

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(परशुराम-लक्ष्मण-संवाद)

भूपमंडली प्रचंड चंडीस-कोदंडु खंड्यौ,

चंड बाहुदंडु जाकेा ताहीसों कहतु हौं।

कठिन कुठार-धार धरिबेको धीर ताहि,

बीरता बिदित ताको देखिये चहतु हौं।
 
तुलसी समाजु राज तजि सो बिराजै आजु,
 
गाज्यौ मृगराजु गजराजु ज्यों गहतु हौं।।

छोनीमें न छाड्यो छप्यो छोनिपको छोना छोटो,

 छोनिप छपन बाँको बिरूद बहतु हौं।18।


निपट निदरि बोले बचन कुठारपानि,

मानी त्रास औनिपनि मानो मौनता गही।

रोष माखे लखनु अकनि अनखोही बातैं ,

तुलसी बिनीत बानी बिहसि ऐसी कही।।

 सुजस तिहारें भरे भुअन भृगुतिलक,
 
प्रगट प्रतापु आपु कह्यो सेा सबै सही।।

 टूट्यौ सो न जुरैगो सरासनु महेसजूको,
 
रावरी पिनाकमें सरीकता कहाँ रही।19।


 गर्भ के अगर्भ काटनको पटु धार कुठारू कराल है जाको।

सोई हौं बूझत राजसभा ‘धनु को दल्यौ’ हौं दलिहौं बलु ताको।ं

लघु आनन उत्तर देत बड़े लरिहै मरिहैं करिहैं कछु साको।

 गोरो गरूर गुमान भर्यौ कहैा कौसिक छोटो-सेा ढोटो है काको।20।


मनु राखिबेके काज राजा मेरे संग दए,

दले जातुधान जे जितैया बिबुधेसके।

गौतमकी तीय तारी, मेटे अघ भूरि भार,

 लोचन-अतिथि भए जनक जनेसके।।

चंड बाहुदंड-बल चंडीस-कोदंडु खंड्यौ,

 ब्याही जानकी, जीते नरेस देस-देसके।

साँवरे -गोरे सरीर धीर महाबीर दोऊ,

नाम रामु लखनु कुमार कोसलेसके।21।


काल कराल नृपालन्हके धनुभंगु सुनै फरसा लिएँ धाए।

लक्खनु रामु बिलोकि सप्रेम महारिसतें फिरि आँखि दिखाए।

धीरसिरोमनि बीर बड़े बिनयी बिजयी रघुनाथु सुहाए।

लायक हे भृगुनायकु, से धनु-सायक सौंपि सुभायँ सिधाए।।22।।


( इति बालकाण्ड)