भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता-दोय / विनोद स्वामी
Kavita Kosh से
एक तिरस्यो मिनख
ठंडां री दुकान करै।
एक भूखो मिनख
जळेबी बेचै।
एक घरबायरो आदमी
हेली चिणै।
आ तो कोई अचंभावाळी बात कोनी
पण
एक चापलूस मिनख
कविता लिखै!