भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता-2 / निवेदिता
Kavita Kosh से
तुम्हारा साथ वैसा ही है जैसे
रोटी का होना या भूख का लगना
भूख है तो धरती है
धरती है तो रोटी है
रोटी है तो प्यार उगता रहेगा हमारे खेतों में
प्यार है तो धरती बची रहेगी
और धरती की उष्मा भी
प्यार खेतों में धान रोपने की तरह है
प्यार हरी घास है जो हर
भीगी सतह पर उग आती है