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कविता और प्रेम / रामधारी सिंह "दिनकर"

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ऊपर सुनील अम्बर, नीचे सागर अथाह,
है स्नेह और कविता, दोनों की एक राह।
ऊपर निरभ्र शुभ्रता स्वच्छ अम्बर की हो,
नीचे गभीरता अगम-अतल सागर की हो।