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कविता का गणतन्त्र / भारत भूषण तिवारी / मार्टिन एस्पादा

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कविता के गणतन्त्र में
कवियों से भरी रेलगाड़ी
भरी बरसात में दक्खिन को जाती है
जब खजूर के पेड़ डोलते हैं
और घोड़े झाड़ते हैं हवा में दुलत्तियाँ
और गाँव की बैंड पार्टियाँ
तुरही लिये, पहने गोल टोपियाँ
फिरती हैं गली-मोहल्ले
और उनके पीछे चलते हैं राष्ट्रपति
गणतन्त्र के
हरेेक से हाथ मिलाते

कविता के गणतन्त्र में,
संन्यासी छपवाते हैं छन्द रात के बारे में
ईसाई उन मठों में बनी चॉकलेट के डिब्बों पर,
रेस्तराँओं के रसोईघर
ईल मछली से लेकर हाथी चक तक
की पाकविधियों के लिए गीतों का इस्तेमाल हैं करते
और कवियों को जिमाया जाता है मुफ्त

कविता के गणतन्त्र में
चिड़ियाघर में कवि लंगूरों को सुनाते है कविता
और सबरे वानर
कवि और लंगूर एक सामान, चीखते है खुशी से

कविता के गणतन्त्र में
कवि किराये पर लेते हैं हेलीकॉप्टर
बुकमार्को पर लिखी कविताओं की बमबारी
राष्ट्रपति भवन पर करने के लिए
और प्रांगण में हर कोई
भर आई आँखों के साथ,
भागता फिरता है अन्धों-सा
लपक लेने को
आसमान से फरफराकर गिरती कविता

कविता के गणतन्त्र में,
हवाई-अड्डे की सुरक्षागार्ड
आपको तब तक अपना देश छोड़ने नहीं देती
जब तक आप सुना न दे उसे एक कविता
और वह कह उठे आह! अति सुन्दर।