कविता का घर / दीपक मिश्र / दिनेश कुमार माली
रचनाकार: दीपक मिश्र (1939)
जन्मस्थान: कमारखंडी, केन्द्रपाड़ा, कटक
कविता संग्रह: असमापिका (1961), दीपक मिश्रंक केतोटि कविता (1963), अनुष्टुप (1969), निषिद्ध ह्रद (1970), निर्जन नक्षत्र (1971), मध्यान्हर छाइ(1974), वृत्त(1975), सप्तम पृथ्वी(1977), अरणा महिषी(1979), शून्यतार शोष(1981), कपट सूर्यास्त (1984), धूलिर सिंहासन(1989),निरवधी नाभिश्वास (1992),ऋक(1994)
कहाँ ,
कहाँ से
लकड़ी, तृण
सूखी दूब
सूखे पत्ते
नारियल पेड़ की शाखा के धागे
तुरई फल के सूखे जाल
बांस की छोटी टहनियां
इकट्ठे किए वर्ष भर
साल भर
जितने गीत
उसने कंठस्थ किए थे
निशब्दता और कारुण्य ने
आश्चर्य के साथ
अपने स्वर में बदल दिए
इस तरह के उद्योग के बीच
मुझे कोई देख लेता था
लग रहा था जैसे
किसी ने एक मासूम हंसी
मेरी कोठरी में रख दी थी
दिन चला गया ..........
दिन में एक अद्भुत
सम्मोहन यन्त्र के क्षणिक स्पर्श से
मैंने देखा
मेरी निभृत और निर्वाक आँखें
(देखा)
आह ! बैकुंठ के समान एक घर झूल रहा था
सफ़ेद फूलों की डाल पर लावण्य का हरा विमान
और चित्रित चोंच में उसके घूम रहा है
समाप्त नहीं होने वाला एक सुहाना संगीत
सारी कोशिशें करने के बाद भी
मैंने लकड़ी, तिनके इकट्ठे किए
( जिसे कागज़, कलम और स्याही कह सकते हैं )
टेबल के इधर- उधर पड़ा हुआ है
एक निष्फल सपने की भांति
मेरी कविता का घर .
इस समय नैऋत्य कोण से
दुखों का परित्याग करके
अभिशाप मुक्त हवा के झोंके के एक लम्बे हाथ ने
अचानक उलट दिए
सारे दृश्य पटल और
गर्दन घुमाकर देखते समय
मैं देखता हूँ , मेरी कविता झूल रही है
एक रंगीन चिड़िया बन कर
विमान के रानी हंसपुर में
और
सफ़ेद फूल के रंग जैसे मेरे
कागज़ के उपर शोभायमान है
वह श्वेत पदम् पक्षी या
भारतीय नारी का भास्कर्य
कविता के घर
शायद इस तरह बनाए जाते है
जीवन भर खोकर
अभाव के मालती वन में