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कविता के आस-पास / मदन गोपाल लढा

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दोस्त कहता है-
बावरे हो गए हो क्या
क्या सोचते हो
अकेले बैठे
आओ घूमने चलते हैं
गुवाड़ में।

कैसे समझाऊँ
गुवाड़ तो गुवाड़
मैं तो घूम लेता हूँ
समूची सृष्टि में
कविता के इर्द-गिर्द
अकेले बैठे-बिठाए।

मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा