भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता के लिये बुरा समय / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे तो पता है : सिर्फ़ क़िस्मतवाला ही
प्यारा होता है । उसकी आवाज़
चाव से सुनी जाती है । उसका चेहरा ख़ूबसूरत होता है ।

आँगन में टेढ़ा-मेढ़ा खड़ा पेड़
ऊसर ज़मीन की ओर इशारा करता है, लेकिन
वहाँ से गुज़रने वाले उसपर एक लात जमा देते हैं
ठीक ही करते हैं ।
 
संकरी खाड़ी में तैरती हरी नावें और उनके रंगीन मस्तूल
मैं नहीं देखता । सबसे पहले
मुझे दिखाई देते हैं मछुआरों के विशाल जाल ।
 
क्यों मैं सिर्फ़ इसी बारे में बात करता हूँ
कि चालीस साल की घरेलू औरत लंगड़ाती हुई सी चलती है ?

कन्याओं के सीने तो
हमेशा की तरह गर्म होते हैं ।
अपने गीतों में छन्द
मुझे लगभग घमण्ड की तरह लगते हैं ।

मेरे अन्दर लड़ती रहती हैं
खिले हुए सेब के पेड़ की ख़ुशियाँ
और रंगसाज़ के भाषणों पर हिकारत ।
 
लेकिन सिर्फ़ यह दूसरी भावना
मुझे लिखने की मेज़ तक ले जाती है ।

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य